सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

ज्योतिष अर्थात अध्यात्म भाग - 1




संबंध में कुछ बातें जान लेनी जरूरी हैं। सबसे पहली तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य से समस्त सौर परिवार का--मंगल का, बृहस्पति का, चंद्र का, पृथ्वी का जन्म हुआ है। ये सब सूर्य के ही अंग हैं। फिर पृथ्वी पर जीवन का जन्म हुआ--पौधों से लेकर मनुष्य तक। मनुष्य पृथ्वी का अंग है, पृथ्वी सूरज का अंग है। अगर हम इसे ऐसा समझें--एक मां है, उसकी एक बेटी है और उसकी एक बेटी है।

उन
तीनों के शरीर में एक ही रक्त प्रवाहित होता है, उन तीनों के शरीर का निर्माण एक ही तरह के सेल्स से, एक ही तरह के कोष्ठों से होता है।
और वैज्ञानिक एक शब्द का प्रयोग करते हैं एम्पैथी का। जो चीजें एक से ही पैदा होती हैं उनके भीतर एक अंतर-समानुभूति होती है। सूर्य से पृथ्वी पैदा होती है, पृथ्वी से हम सबके शरीर निर्मित होते हैं। थोड़ा ही दूर फासले पर सूरज हमारा महापिता है। सूर्य पर जो भी घटित होता है

वह
हमारे रोम-रोम में स्पंदित होता है। होगा ही। क्योंकि हमारा रोम-रोम भी सूर्य से ही निर्मित है। सूर्य इतना दूर दिखाई पड़ता है, इतना दूर नहीं है। हमारे रक्त के एक-एक कण में और हड्डी के एक-एक टुकड़े में सूर्य के ही अणुओं का वास है। हम सूर्य के ही टुकड़े हैं


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