मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

ज्योतिष अर्थात अध्यात्म भाग - अंतिम भाग


मोहम्मद ने कहा कि तू उठा सकता था पहला पैर भी, दायां भी उठा सकता था, कोई मजबूरी न थी। लेकिन अब चूंकि तू बायां उठा चुका इसलिए अब दायां उठाने में असमर्थता हो गई। आदमी की सीमाएं हैं। सीमाओं के भीतर स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता सीमाओं के बाहर नहीं है। तो बहुत पुराना संघर्ष है आदमी के चिंतन का कि अगर आदमी पूरी तरह परतंत्र है, जैसा ज्योतिषी साधारणतः कहते हुए मालूम पड़ते हैं। साधारण ज्योतिषी कहते हुए मालूम पड़ते हैं कि सब सुनिश्चित है, जो विधि ने लिखा है वह होकर रहेगा। तो फिर सारा धर्म व्यर्थ हो जाता है। और या फिर जैसा कि तथाकथित तर्कवादी, बुद्धिवादी कहते हैं कि सब स्वच्छंद है, कुछ बंधा हुआ नहीं है, कुछ होने का निश्चित नहीं है, सब अनिश्चित है। तो॥

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