गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

बेशर्त प्रेम - भाग - 4


पढ़े क्लिक करे पढ़े नहीं हैं, क्योंकि ऊपर जाने में तुम्हें बदलना पड़ेगा। क्योंकि ऊपर जाना है तो ऊपर जाने के योग्य होना पड़ेगा; प्रतिपल तुम्हारे चेतना के तल को ऊपर उठना पड़ेगा, तभी तुम सीढ़ी पार कर सकोगे। नीचे गिरने में तो कुछ भी नहीं करना पड़ता।

मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटों के लिए एक साइकिल खरीद लाया था। दो बेटे। तो उसने कहा कि दोनों आधा-आधा साइकिल से खेलना; कोई झगड़ा खड़ा न हो। एक दिन उसने देखा कि बड़ा बेटा बार-बार ऊपर टेकरी पर जाता है और वहां से साइकिल पर बैठ कर नीचे आता है। कई बार उसे टेकरी से साइकिल पर बैठे हुए देखा। तो उसने बुला कर कहा कि मैंने कहा था, छोटे बेटे को भी आधा-आधा। उसने कहा, आधा ही आधा कर रहे हैं। छोटा बेटा ऊपर की तरफ ले जाता है साइकिल; हम ऊपर से नीचे की तरफ लाते हैं--आधा-आधा। अब पहाड़ी पर साइकिल को ले जाना, चढ़ने का तो सवाल ही नहीं। किसी तरह हांफता हुआ छोटा बेटा ऊपर तक पहुंचा देता है। और बड़ा बेटा उस पर बैठ कर नीचे की यात्रा कर लेता है। समान नहीं है; आधी-आधी नहीं है यात्रा। नीचे की यात्रा यात्रा ही नहीं है; गिरना है, पतन है; तुम जहां थे वहां से भी नीचे उतरना है


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