रविवार, 24 अक्तूबर 2010

सत्य को आधा नहीं किया जा सकता


शक्ति हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती है, न में भी खो सकती है। इसलिए योग मानता है, सृष्टि सिर्फ एक पहलू है, प्रलय दूसरा पहलू है। ऐसा नहीं है कि सब कुछ सदा रहेगा; खोएगा, शून्य भी हो जाएगा। फिर-फिर होता रहेगा, खोता रहेगा। जैसे एक बीज को तोड़ कर देखें, तो कहीं किसी वृक्ष का कोई पता नहीं चलता। कितना ही खोजें, वृक्ष की कहीं कोई खबर नहीं मिलती। लेकिन फिर इस छोटे से बीज से वृक्ष आता जरूर है। कभी हमने नहीं सोचा कि बीज में जो कभी भी नहीं मिलता है, वह कहां से आता है? और इतने छोटे से बीज में इतने बड़े वृक्ष का छिपा होना?

फिर वह वृक्ष बीजों को जन्म देकर फिर खो जाता है। ठीक ऐसे ही पूरा अस्तित्व बनता है, खोता है। शक्ति अस्तित्व में आती है और अनस्तित्व में चली जाती है।


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