मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

प्रत्येक अंश पूर्ण है


यह बड़े मजे का सूत्र है। इस सूत्र में न मालूम कितनी बातें कही गई हैं। इस सूत्र में यह कहा गया है कि वह पूर्ण आ जाता है निकलकर पूरा का पूरा। ध्यान रहे, पीछे पूरा रह जाता है, यह तो कहा ही है, साथ में यह भी कहा है कि वह पूरा का पूरा बाहर आ जाता है। इसका क्या मतलब हुआ? इसका यह मतलब हुआ कि एक-एक व्यक्ति भी पूरा का पूरा परमात्मा है। एक-एक व्यक्ति भी, एक-एक अणु भी पूरा का पूरा परमात्मा है। ऐसा नहीं कि अणु आंशिक परमात्मा है-पूरा का पूरा।

थोड़ा कठिन है, क्योंकि हमारे गणित के लिए अपरिचित है। अगर यह समझ में आया कि पूर्ण से पूर्ण निकल आता है और पीछे पूर्ण रह जाता है, तो मैं और एक बात कहता हूं कि पूर्ण से अनंत पूर्ण निकल आते हैं, तो भी पीछे पूर्ण रह जाता है। एक पूर्ण निकलकर अगर दूसरा पूर्ण न निकल सके, तो उसका मतलब हुआ कि एक के निकलने के बाद पीछे कुछ कम हो गया है। एक पूर्ण के बाद दूसरा पूर्ण निकले, तीसरा पूर्ण निकले और पूर्ण निकलते चले जाएं और पीछे सदा ही पूर्ण निकलने की उतनी ही क्षमता बनी रहे, तभी पीछे पूर्ण शेष रहा। इसलिए ऐसा नहीं है कि आप परमात्मा के एक हिस्से हैं। जो ऐसा कहता है, वह गलत कहता है। जो ऐसा कहता है कि आप एक अंश हैं परमात्मा के, वह गलत कहता है। वह फिर लोअर मैथमेटिक्स की बात कर रहा है। वह वही दुनिया की बात कर रहा है जहां दो और दो चार होते हैं। वह नापी-जोखी जाने वाली दुनिया की बात कर रहा है। मैं आपसे कहता हूं और उपनिषद आपसे यह कहते हैं, और जिन्होंने भी कभी जाना है वह यही कहते हैं कि तुम पूरे के पूरे परमात्मा हो।

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