शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

स्वयं को समझे बिना ओशो को नहीं समझा जा सकता


यदि आप स्वयं को समझते हैं, तो ही ओशो को समझ सकते हैं । ओशो किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं, ओशो संपूर्ण अस्तित्व की अभिव्यक्ति हैं । ओशो शाश्वत हैं, ओशो ने किसी बंधी-बंधाई और किसी संकीर्ण विचारधारा को कभी अभिव्यक्त नहीं किया । जब आप कहते हैं कि भारतीय संस्कृति ,तो आपने स्वयं को अस्तित्व से अलग कर लिया, अस्तित्व में कोई रेखाएँ नहीं हैं, जहाँ मनुष्य को भारतीय या पाकिस्तानी के बीच बाँटा जा सके । जब आप भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ कहते हैं, तो आप में अन्य संस्कृतियों के प्रति वैर भाव आ ही गया । आप ने स्वयं का मंडन और दूसरे का खंडन कर ही दिया । लेकिन अस्तित्व में कहीं कोई दूसरा है ही नहीं, सबका अस्तित्व अद्वितीय है । इसके लिए स्वयं की समझ और अस्तित्व का गहन स्वीकार भाव चाहिए ।
ओशो ने कभी नहीं कहा कि उनके अनुसार जीवन बनाया जाए । जीवन तो अस्तित्व की एक अनुपम भेंट हैं । हम सबमें वह खिलता है ।अस्तित्व किसी दमन को नहीं जानता । वह तो बस होना है । लेकिन मनुष्य अपने होने के अलावा कुछ और बनने की कोशिश करता है । इस और बनने में ही दुख है । ओशो स्वयं को जीते हैं, वे किसी दूसरे जैसे होने की कोशिश नहीं करते । यही उनका सौंदर्य है और यही उनकी सीखावन है, कि व्यक्ति-व्यक्ति स्वयं की तरह जिए । अस्तित्व ने जो अद्वितीयता उसमें दी है , उसका सम्मान करे । अस्तित्व कभी कार्बन का़पी नहीं बनाता

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