रविवार, 24 अक्तूबर 2010

राजनीतिज्ञ भी यह समझ गया है,


शिक्षक ज्ञान का प्रसारक नहीं है। जैसे उसकी स्थिति है वह उस ज्ञान का स्थापित, स्थायी रखने वाला है। जो उत्पन्न हो चुका है, और जो हो सकता है उसमें बाधा देने वाला है। वह हमेशा अतीत के घेरे से बाहर नहीं उठने देना चाहता है। और इसका परिणाम यह होता है कि हजार-हजार साल तक न मालूम किस-किस प्रकार की नासमझियां, न मालूम किस-किस तरह के अज्ञान चलते चले जाते हैं। उनको मरने नहीं दिया जाता, उनको मरने का मौका नहीं दिया जाता। राजनीतिज्ञ भी यह समझ गया है, इसलिए शिक्षक का शोषण राजनीतिज्ञ भी करता है। और सबसे आश्चर्य की बात है कि इसका शिक्षक को कोई बोध नहीं है कि उसका शोषण होता है सेवा के नाम पर, कि वह समाज की सेवा करता है, उसका शोषण होता है-इसका शिक्षक को कोई बोध नहीं है! किस-किस तरह का शोषण होता है?



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