रविवार, 24 अक्तूबर 2010

स्वयं में डूबो


एक राजा ने किसी सामान्यत: स्वस्थ और संतुलित व्यक्ति को कैद कर लिया था- एकाकीपन का मनुष्य पर क्या प्रभाव होता है, इस अध्ययन के लिए। वह व्यक्ति कुछ समय तक चीखता रहा चिल्लाता रहा। बाहर जाने के लिए रोता था, सिर पटकता था- उसकी सारी सत्ता जो बाहर थी। सारा जीवन तो 'पर' से अन्य बंधा था। अपने में तो वह कुछ भी नहीं था। अकेला होना न होने के ही बराबर था। वह धीरे-धीरे टूटने लगा। उसके भीतर कुछ विलीन होने लगा, चुप्पी आ गई। रुदन भी चला गया। आंसू भी सूख गये और आंखें ऐसे देखने लगीं, जैसे पत्थर हों। वह देखता हुआ भी लगता जैसे नहीं देख रहा है। दिन बीते, वर्ष बीत गया। उसकी सुख सुविधा की सब व्यवस्था थी। जो उसे बाहर उपलब्ध नहीं था, वह सब कैद में उपलब्ध था। शाही आतिथ्य जो था! लेकिन वर्ष पूरे होने पर विशेषज्ञों ने कहा, 'वह पागल हो गया है।'

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