बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

क्या दुनिया अधिक पागल होती जा रही है ?


ऐसा लगता है कि दुनिया दिन पर दिन अधिक से अधिक पागल होती जा रही है। कोई नहीं जानता कि क्या हो रहा है और हर चीज उलटी-सीधी और गड़बड़ हो गई है। यह बात अखबार कहते हैं। क्या यह सच है? और यदि ऐसा है तो क्या जीवन में कोई आत्यंतिक संतुलन है जो हर चीज को स्थिर रखे हुए है ?

दुनिया वैसी ही है; यह हमेशा ऐसी ही रही है-उलटी, पागल, विक्षिप्त। सच तो यह है कि सिर्फ एक नई बात दुनिया में हुई है और वह यह होश कि हम पागल हैं, कि हम उलटे हैं, कि हममें कुछ मौलिक गलती है। और यह महान आशीर्वाद है-यह होश। निश्चित ही यह शुरुआत है; एक लंबी प्रक्रिया का सिर्फ क ख ग, सिर्फ बीज, लेकिन बहुत अर्थपूर्ण। दुनिया अपने विक्षिप्त ढंगों के प्रति कभी भी सचेत नहीं थी जितनी कि आज है। यह हमेशा ऐसी ही रही है। तीन हजार सालों में मानव ने पांच हजार युद्ध किए। क्या तुम कह सकते हो कि मानवता स्वस्थ रही है?

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